Anjaan raste
मेरा जिवन बिल्कुल सीधी लकीर पर चल रहा था, जैसी लकीर मैंने खुद खींची थी, कंप्यूटर की पढ़ाई, मल्टीनेशनल फर्म में नौकरी, टॉल, डार्क, हैंडसम केयरिंग पति, चार हाथो से प्यार बरसाने वाला परिवार और एक प्यारी बिटिया ।
मै जब दूसरी बार मा बनने वाली थी तब परिवार में सब लोग सहमत थे की हम कोई sonography test नहीं करवाएंगे और बेटा – बेटी जो भी जीवन में आएगा उसे खुशहाल जिंदगी और अच्छी परवरिश देंगे, यह सब मुझे इसलिए बताना पड़ रहा है क्योंकि उस समय वो पुरानी विचारधारा और sonography और अवांछित…. सब चलन में था, यह सब बताते हुए भी में अपने गुस्से को काबू नहीं कर पा रही हूं। भला वो सब कैसी मा ए होंगी जो खुद या परिवार के दबाव में अपने अंश को कुचल सकती है… खेर छोड़ो ये सब बाते ।
जिस दिन स्तुति मेरे जीवन में आई, उसी दिन भगवान ने मुझे अपनी लकीर से उठा कर एक अनजान रास्ते पर डाल दिया । नॉर्मल डिलीवरी कि वजह से में डॉक्टर और नर्स की बाते सुन पा रही थी, जैसे ही स्तुति के रोने कि आवाज सुनाई दी, नर्स बोली, डॉक्टर यह एंजेल जैसी दिख रही है, इसकी आंखे तो देखो, अलग है सबसे । मुझे इतना समझ में आया कि मुझे बेटी हुई है और वो फरिश्ते जैसी प्यारी है । सारी बातें एक पिक्चर कि तरह मेरे स्मृतिपट में सहेजें हुए है ऐसी ही जैसे कल ही घटित हुई हैं । दूसरे दिन जब बच्चों के डाक्टर राउंड लगाने आए तब उनकी और गायनेकोलॉजिस्ट की कुछ बातचीत मेरी समझ में नहीं आए , मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि स्तुति की कुछ रिपोर्ट करवानी पड़ेगी उन्हें शक है कि चाइल्ड मोंगोल है । साइंस विषय के कर पढ़ाई कि वजह से मुझे समझ में आ गया कि वह डाउन syndrome के बारे में बात कर रहे है, जब से स्तुति का ब्लड दिया तब से लेकर पूरे महीने जब तक रिपोर्ट नहीं आई, में अपने आप को मानती रही को डॉक्टर की समझने में गलती हो सकती है, भगवान मेरे साथ कभी ऐसा नहीं करेंगे, मैंने आज तक सब के साथ अच्छा व्यवहार किया है, मेरे साथ कुछ ग़लत नहीं होगा, कभी भगवान को रिश्वत देने की भी कोशिश की , है भगवान अगर स्तुति की रिपोर्ट नॉर्मल देना मै हर रोज़ मला करूंगी, गायत्री मंत्र बोलूंगी …..
रिपोर्ट जब हाथ में आई तो समझ मै आया कि डॉक्टर का अनुमान सही है वह trisomi २१ के साथ ही पैदा हुई है, आंखो में पानी भर आया, बहुत तकलीफ़ भी हुई, पर तुरंत ही विचार आया अब तो यह सच ही है – अब क्या करना है ? बचपन मै ही मा को खो देने की वजह से अपनी तकलीफ़ में से रास्ता खुद ही ढूंढने की एक आदत सी ही गई थी, वहीं अब काम में आया, सब से पहले में genisist डॉक्टर जो जनीन विद्या में एक्सपर्ट हैं उन से मिलने गई, उनसे समझा की इस कि वजह क्या क्या हो सकती है और अब इसकी strength और weakness क्या है , उन्होंने बताया कि ब्राइट कलर्स, happy atmosphere, लगातार इस के साथ बाते करना वगेरह बहुत लाभ दाई रहेगा, उनका masaltone लो होता है उसपे भी काम करना पड़ेगा, हर काम धीरज से सीखने पे आ जाएगा, साथ हीं उन्होंने therapies के लिए भी समझाया, मै वहीं से एक center मै गई जो स्पेशल बच्चो के लिए काम करते थे, वहां जा के में फुट पड़ी, इतने सारे बच्चे , और हर एक को अलग अलग तकलीफ़ और उनकी मां के परेशान चेहरे, मैंने जैसे तैसे अपने आप को संभाला, और तब ही सोच लिया कि मै अपने जी जान से स्तुति को बड़ा करूंगी और एक अच्छा जीवन देने की कोशिश करूंगी ।
स्तुति की physio therapy ६ महीने की थी तब चालू करी, वहां के सभी therapist से जरूरी हर बात मै सीखती थी और घर पर मै दोहराती थी, कंप्यूटर जिसे मैं कैरियर बनाने के लिए सीखा था वह डाउन syndrome ki जानकारी प्राप्त कर ने मै बड़ा लाभदाय सिद्ध हुआ, जीवन में कुछ बदलाव आए थे, मिशन स्तुति पे काम चालू हो गया था, जॉब मैंने छोड़ दी थी, मेरा पूरा समय, ताकत और ज्ञान दोनों बच्चों को बड़ा करने में लगा दिया । मेरी खुश किस्मती है कि मुझे सब जगह अच्छे इंसान ही मिले अच्छे टीचर्स, अच्छे थेरेपिस्ट, अच्छे पड़ोसी, अच्छे संबंधी, अच्छा परिवार ।
आज स्तुति १७ साल की है, बहुत खुश मिजाज और सुलझी हुई है दसवीं कक्षा पास कर ली है, कंप्यूटर, मोबाइल, और सारे gudgets आराम से यूज करती है, घर के काफी काम वह जानती है, आज मै उसका नहीं, वह मेरा support है, यह रास्ते पे चलने के दौरान मैंने कई बाते सीखी है । स्तुति की comparision कभी भी दूसरे बच्चों के साथ ना करते हुए उसी के साथ करती हूं, कल उसे जितना आता था उस से आज वह जरा सा भी आगे बढ़ी है तो मैं खुश हूं, थेरेपिस्ट हम को मदद कर सकते हैं लेकिन आखिरी काम तो हमे ही करना है इसीलिए वह सभी काम चाहे वह play therapy hi, speech therapy या पढ़ाई, टीचर के help के बाद में ही वह सीख जाती और उसपे काम करती । पूरा परिवार ही उसमे जुट जाता है तो परिणाम अपने आप दिखता है, स्तुति वह सब सीख सकती है जो कोई भी इंसान सीख सकता है लेकिन सीखने की अवधि ज्यादा लंबी हो सकती है या फिर सीखाने का तरीका अलग हो सकता है । इस राह के दौरान मुझे यह समझ में आ ही गया है की रातों रात को चमत्कार नहीं होगा, यह जीवन है और हर जीवन का संघर्ष चलता रहता है, यदि अच्छे परिणाम चाहिए तो हमे खुश रहना होगा और हरदम प्रयत्न करते रहना होगा । मै खुशनसीब हूं के मेरे हर कदम पर परिवार ने एक जुट होकर साथ दिया है और जहां जरूरत पड़ती है वहां हौसला अफ़्झाई भी की है ।
अनजाने रास्ते पे कदम अभी भी चल रहे है, कई पड़ाव पार कर लिए, कई पड़ाव बाकी है, पर मजा मंज़िल में ही नहीं – राह में भी है ।
— फाल्गुनी दोशी
Falguni Doshi
(Mobile No 9427451040)
The Unseen Road
My life was moving in a smooth, straight line, just like the way I had drawn it for myself – studied computers, got a job in a multinational firm, married a tall, dark, handsome and caring husband, had an extremely loving family and a lovely daughter.
When I was going to be a mother for the second time, everyone in the family agreed that we would not get a sonography test done and will accept whoever comes into our lives – whether a daughter or a son and will give her or him a happy life and a good upbringing. I have to say this because at that time, the old ideology of preferring a son and a sonography test to find the gender prevailed. Even as I write this, I am unable to control my anger. What sort of mothers are those who can destroy a part of their own being due to their own mindsets or under family’s pressure? Anyway.
The day Stuti came into my life, God lifted me from my smooth, straight line and put me on an unknown path. Since it was a normal delivery, I was able to listen to the conversation of the doctor and the nurse. As soon as Stuti’s cry was heard, the nurse said, ‘Look, doctor, she is looking like an angel, and look at her eyes, this child is so different!’ I could make out that I have got a daughter and she is as cute as an angel. All these things are etched in my mind like a picture… as if it happened only yesterday. On the second day, the paediatrician came for rounds and was discussing something with my gynaecologist. I did not understand what they were saying and when I asked, they said that certain tests have to be done since they suspect Stuti to be a Mongol[1]. I was a student of science, so I understood that they were talking about Down syndrome. Stuti’s blood test was done. The report was supposed to come in a month. And for that whole month, I kept convincing myself that the doctor might not have understood Stuti’s problem properly, there may be some mistake somewhere and that God will never do this to me. My behaviour has always been good with everyone, nothing will ever go wrong with me, and I have never even tried to bribe God, I thought. Oh, God! Please see that Stuti’s reports are normal, I will chant Gayatri Mantra everyday…
When the reports finally came, the doctor’s suspicion was correct and Stuti was born with trisomy 21. My eyes were filled with tears and it was all quite painful. But then, immediately, it struck me that now that we know about it, what next? I lost my mother when I was a child, so I was used to solving all my problems myself and that helped me. The first thing I did was to meet the geneticist, a doctor who is an expert in genealogy, to try and understand the reasons for this and what the strengths and weaknesses are. He told me that bright colours, happy atmosphere and constantly talking with Stuti would be very beneficial. Babies with Down syndrome have low muscle tone and that has to be taken care of. He explained about various therapies. Everything can be learnt with patience. Then, I went to a centre where they work with special children, and I broke down there…so many children… each one having a different problem and the distressed faces of their mothers. I somehow controlled myself and decided that I would bring up Stuti with all my might and try to give her a good life.
Stuti’s physiotherapy started when she was six months old. I learnt from the therapists all that was necessary for her and repeated it at home. I had studied computers to make it my career but now it was very helpful for me in getting information about Down syndrome. There were some changes in life and my work started on ‘Mission Stuti. I gave up my job and spent my time, energy and knowledge in raising my children. I was lucky that I got good people everywhere—good teachers, good therapists, good neighbours, good relatives and a good family.
Stuti is 18 years old today, very cheerful and composed, has passed tenth standard, uses computers, mobiles, and all other gadgets with ease. She updates herself with news. She takes equal participation in general discussions. If we have discussed any product, within a few seconds product related links would be shared on my whats app. Recently she has started her youtube channel also. She has developed much interest in drama. During her self talk usually she plays a role of director of any serial like tarak maheta or bhakharwadi. She went to Mumbai many times with her school to stage a drama or to participate in the Mumbai marathon.
She can do a lot of household chores. She has developed interest in cooking also. Every weekend evening tea is her duty. She always love to explore new things. During lockdown she made her own routine and learned many things online. The List is soooo long.
Today, I am not her support, rather she is my support. I have learnt many things in my journey while walking on this path. I compare Stuti with herself, not with other children. If she does any activity with a little improvement than before, I feel happy. A therapist can help us, but ultimately, it is we who must persist. So even though the teachers used to help Stuti with play therapy, speech therapy and studies, I also did and got accustomed to doing everything that was needed for her. When the whole family gets involved in the process, then the positive results can clearly be seen. Stuti can learn everything that a normal person can learn, only the learning period may be longer, or the method of learning may be different. During all this, I have come to understand that miracles will not happen overnight, this is life and the struggle of each life will go on. If we want good results, then we have to be happy and keep on trying. I am happy that my extended family supported me at every step and has encouraged me wherever required.
I am still walking on an unknown path, and have crossed many stages, many more are still to come, but the pleasure lies not only in reaching the destination but also in walking on the path that takes one to his or her destination.
Falguni Doshi
(Mother
of Stuti Doshi)